माताजी (मालती बाई वी दाते)

Malti bai V. Date

माताजी (मालती बाई वी दाते)

मालती बाई वी दाते, जिन्हे डॉ. वी. एच. दाते के सभी शिष्य माताजी पुकारते थे, ने अपना पूरा जीवन समर्थ रामदास महाराज द्वारा दिए गए निर्देशों के अनुसार व्यतीत किया। इस सांसारिक जीवन में अत्यंत पीड़ादायक परिस्थितियों में भी कैसे जीते हैं, प्रतिकूल परिस्थितियों में भी सद्गुरु के शब्दों का कैसे पालन करना है, जीवन की अत्यंत विकट घड़ी में भी संघर्ष करते हुए भी सद्गुरु की उपाधि को कैसे अर्जित करना है, इन सब के आदर्श रूपों को कोई भी माताजी के जीवन में स्पष्ट देख सकता है और यह बहुत आवश्यक है कि इसे दोनों – सांसारिक एवं आध्यात्मिक – दृष्टिकोण से देखें और आकलन करें।

सतारा में 7 जुलाई 1907 में जन्मी माताजी का डॉ. दाते से विवाह फरवरी 3, 1925 में हुआ। डॉ. दाते माता जी के लिए बिलकुल आदर्श जीवन साथी सिद्ध हुए चूँकि वे उनके साथ आध्यात्मिक पथ पर साथ-साथ चले। 1926 में भाऊसाहब महाराज ने माताजी को स्वप्न में दर्शन दिया और उनको प्रतिदिन भजन करने को कहा। श्री अम्बुराव महाराज ने उनको इस कार्य में सिखाया।

डॉ. दाते के निर्यण के पश्चात माताजी ने शिष्यों की कुशलता की सारी जिम्मेदारी ले ली। रविवार के कार्यक्रम और पुण्यतिथि को वे बिना हिले डुले 4-5 घंटे बैठती थी, चाहे जितना भी दर्द, कष्ट हो। भक्तों और उनके परिवारों के बारे में छोटी से छोटी बातें वो सदैव याद रखतीं। साथ-साथ वे उनकी कुशल क्षेम भी पूछती रहतीं और आध्यात्मिक पथ पर उनकी प्रगति का भी सदैव ख्याल रखतीं थीं।

28 अगस्त 1994 रविवार कृष्ण जन्माष्टमी भाद्रपद 7 (महाराष्ट्र में श्रावण) को उन्होंने निर्यण को प्राप्त किया।

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