दार्शनिक, शिक्षक, ऋषि

dr v. h. date

डॉ. वी. एच. दाते की अपने आध्यात्मिक गुरु प्रो. आर. डी. रानडे पहली भेंट सन 1918 ईस्वी में जमखंडी में हुई। सन 1920 ईस्वी में दसवीं पूरी करने के उपरांत उन्होंने बॉम्बे विश्वविद्यालय से स्नातक (ऑनर्स) में नामांकन लिया और 1924 में उपाधि प्राप्त की। 3 फरवरी, 1925 को डा॰ दाते ने विवाह कर गृहस्थ आश्रम में प्रवेश किया । 1926-27 के दौरान वे पूना में दर्शनशास्त्र और धर्म अकादमी (Academy of Philosophy and Religion) के भी सदस्य रहे और 1929 में बॉम्बे विश्वविद्यालय से दर्शनशास्त्र में स्नातकोत्तर उपाधी को प्राप्त किया। डा॰ दाते ने 1930 से 1932 तक इलाहाबाद विश्वविद्यालय में प्रो. आर. डी. रानडे के मार्गदर्शन में शोध किया।

डॉ. वी. एच. दाते के जीवन की महत्वपूर्ण घटनायें

एक ईश्वर एक विश्व एक मानवता

गुरुदेव रानडे

प्रो. आर. डी. रानडे का जन्म दक्षिण भारत के कर्नाटक राज्य के जमखंडी नामक गांव में हुआ था। उनकी स्नातकोत्तर की शिक्षा मुंबई विश्वविद्यालय से कला में हुयी. उनके अनुयायी और शिष्य उनको गुरुदेव नाम से बुलाते थे।
छात्र जीवन से ही उनकी वृत्ति गहन आध्यात्मिकता की ओर थी। कालांतर में उन्होंने व्याख्याता के पद को क्रमशः पूना के फर्ग्यूसन कॉलेज में दर्शनशास्त्र और फिर इलाहाबाद विश्वविद्यालय में दर्शनशास्त्र विभाग के प्रमुख और कुलपति के रूप में सुशोभित किया. शैक्षणिक और प्रशासनिक दोनों क्षेत्रों में उनका कार्य स्मरणीय एवं अत्योत्तम था।
निम्बाल में अध्यात्म विद्यापीठ अथवा आध्यात्मिक विश्वविद्यालय की स्थापना और दर्शन तथा साक्षात्कारवाद पर बहुत ही गंभीर पुस्तकों का लेखन, उनके दर्शन को जीने और जानने के निरंतर प्रयास का ही परिणाम था। मराठी, हिंदी और कन्नड़ साक्षात्कारवाद में उत्कृष्ट कृतियाँ लोकप्रिय प्रस्तुति और गहन विद्वता को परिलक्षित करती हैं। वे 1957 में एक प्रखर विद्वान, दार्शनिक, एक प्रतिष्ठित लेखक और साक्षात्कारवाद की दुर्लभ धार्मिक प्रतिष्ठा छोड़कर गए। उनकी पवित्र समाधि निम्बाल आश्रम में अवस्थित है और हर साल भक्त गण आध्यात्मिक कार्यक्रम करने के लिए आश्रम में इकट्ठा होते हैं।

गुरुदेव के पदचिन्हों पर

डॉ. वी. एच. दाते, प्रो. आर. डी. रानडे के अनन्य भक्त और समर्पित शिष्य थे। उनका रिश्ता न केवल आध्यात्मिक वरन बौद्धिक भी था। डॉ. दाते की वेदांत की समझ और आत्म-साक्षात्कार के मार्ग पर प्रो. रानडे, जिन्हें उनके शिष्य अक्सर गुरुदेव के नाम से पुकारते थे, का गहरा प्रभाव पड़ा। डॉ. दाते की रचनाओं में प्रो. आर. डी. रानडे के प्रति गहरी श्रद्धा साफ दिखती है, जैसे वेदांत व्याख्या और संतों का योग, जिनमें से दोनों में प्रो. रानडे द्वारा लिखे गए प्रस्तावनाएँ शामिल हैंI यह उनके बीच के अत्यंत गहरे और आत्मीय सम्बन्धो को रेखांकित करती हैं।
डॉ. दाते ने आर. डी. रानडे की आध्यात्मिक वंशावली नामक पुस्तक 1982 में लिखी, जो प्रो. रानडे की आध्यात्मिक विरासत और शिक्षा के विषय पर एक व्यापक अन्वेषण है। यह कार्य न केवल प्रो. रानडे के दार्शनिक योगदान पर प्रकाश डालता है, बल्कि उनसे पूर्ववर्ती आध्यात्मिक गुरुओं, जैसे रेवणसिद्ध, काडसिद्ध और निम्बरगी महाराज की वंशावली भी बताता है। अपने गुरु की विरासत को संरक्षित करने के लिए डॉ. दाते का समर्पण यह दिखाता है कि प्रो. रानडे द्वारा निर्धारित आध्यात्मिक मार्ग के प्रति उनका सम्मान कितना गहरा है। डॉ. वी.एच. दाते ने अपनी लेखन और शिक्षा के माध्यम से प्रो. आर.डी. रानडे के दर्शन को प्रसारित करने में तथा इस आध्यात्मिक वंश की अंतर्दृष्टि साधकों को आत्म-साक्षात्कार की ओर उनकी यात्रा में प्रेरित और मार्गदर्शन करते रहने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है।

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